शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

कहाँ यहाँ

साथ देने का वादा निभाने वाले कहाँ यहाँ
मैं तो रह गया हूँ आज तनहा यहाँ


क्यूँ बसाया था ख्वाबों को इस बस्ती में
चुभने लगी हैं टूटी किरचें ख्वाबों की यहाँ


क्यूँ उम्मीदें कर लेता हूँ मैं हर किसी से
जब बिखरे हुए हैं ये बेमुरव्वत वहाँ-यहाँ


टूटे हुए को और तोड़ने की आदत है सभी की
हर कोई क्यों है इतना संगदिल यहाँ

किसी को नहीं मालूम मायने इश्क के
सिखाने वाला क्या कोई नहीं रहा यहाँ


मैं और वो सभी करते हैं फरेब इक दूजे से
क्या कोई नहीं रहा इन सबसे अलग यहाँ

पलट कर देखने की जुर्रत करूँ भी कैसे
टपकी हुई हैं खून-ए-आरजू वहाँ से यहाँ


मैं तो रह गया हूँ आज तनहा यहाँ
साथ देने का वादा निभाने वाले कहाँ यहाँ

                               --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव

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