रविवार, 24 जुलाई 2011

पगला मन

मन की
मत पूछो रे  
मन तो है
अति पागल  
कब क्या सोचे ये    
कब क्या कह डाले
अब तक
कौन जान सका है
किसकी बातें भा जाये
किसकी बातें लग जाये
बुरी
कौन समझ सका है
अभी-अभी लगा है अच्छा ये
अगले ही पल लगेगा वीभत्स 
कौन समझ सका है
अरे पगले
इस संसार में
बड़ा कठिन है बचाए रखना
मन को
किसी ठेस से
इस संसार में
हर कहीं से चलती हैं
ईंट-पत्थरों की बातें 
सुरक्षित रख सकता है
तो रख ले मन को
उसके ठेस से
कौन है यहाँ अपना
कौन है पराया
मत सोचो रे मन
सब हैं तेरे दुश्मन
छुपे हुए दोस्तों की
खाल में 
इतना समझ ले रे मन
धोखे में न आना
उनके फंदे में न आना 
अपना-पराया सब है बेगाना
अकेले ही आया है तू
अकेले ही है जाना
समझ सके इसे तू
तो
सार्थक होगा मेरा समझाना
मन की नैया
जीवन के सागर में
डाल तो दी तूने 
इस तट से उस तट तक
जाने की
सोच तो ली तूने
परन्तु
नैया खेने को पतवार
क्यों न ली तूने 
अरे पगले मन
क्या तू बीच सागर
डूब नहीं जायेगा
उस तट तक
पहुँचने का तेरा स्वप्न
टूट नहीं जायेगा
क्या कहा ...???
तेरा पतवार
किसी और ने ले लिया है ??
अरे पगले
तो तूने दिया ही क्यों
दिया ही तो
दूसरा लिया नहीं क्यों
क्या कहा ..... ??
तू दूसरे पतवार को 
नहीं बना सकता हमसफ़र 
डूबे या उतराए
तू यूँ ही चलता रहेगा
पतवार के बिना
यात्रा करता रहेगा ...?
अरे मन
तब तो
तुझे सब सचमुच ही
पगला कहेंगे रे 
निरा पगला
क्या कहा ... ??
कहते रहें
तुझे नहीं इसकी चिंता
तेरी बिछुड़ी पतवार
ना समझे ऐसा 
तू है मात्र उसका
नहीं किसी और का
उससे किया प्रण
निभाया तूने
वो ये ही जाने
तुझे है इसी की चिंता .... ??
अरे पगले मन
तू तो है
सचमुच निराला
तूने तो भर रखा है
स्वयं में उजाला
रे मन
तू इस उजाले को
बांटता चल
औरों के मन को
प्रकाशवान करता चल
और यूँ ही
पतवार के बिना
सागर-यात्रा 
करता चल
करता चल
             --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 






3 टिप्‍पणियां:

  1. धोखे में न आना
    उनके फंदे में न आना
    अपना-पराया सब है बेगाना
    अकेले ही आया है तू
    अकेले ही है जाना
    समझ सके इसे तू
    तो
    सार्थक होगा मेरा समझाना

    यही अगर समझ ले तो फिर किस बात का रोना....
    बहुत बढ़िया...

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  2. स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।

    कल 16/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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