शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

आऊं मैं

रहो जब किसी महफ़िल में तेरे ख्यालों में आऊं मैं
करो जब गुफ्तगू किसी से तिरे जुबां पे आऊं मैं


इल्तिजा है या रब इतना तो दया कर
करे बंद आंखे वो तो उसे नज़र आऊं मैं


इश्क का खूबसूरत अंदाज़ देखो दोस्तों
तकलीफ हो उसे तो अश्क-ए-दर्द बहाऊ मैं


गुज़र जाती हैं सदियाँ जैसे उसके बगैर
मिल जाये वो कभी तो किस्मत पे इतराऊ मैं


बयाँ-ए-हुश्न उसका कैसे करूँ भला
मिले ऐश्वर्या बदले में तो उसे भी ठुकराऊ मैं


इतना दीवाना बना दे खुदा मुझे उसका
बगैर देखे उसे उसकी तस्वीर बनाऊ मैं 


करो जब गुफ्तगू किसी से तिरे जुबां पे आऊं मैं
रहो जब किसी महफ़िल में तेरे ख्यालों में आऊं मैं

                                    --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव

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