रहो जब किसी महफ़िल में तेरे ख्यालों में आऊं मैं
करो जब गुफ्तगू किसी से तिरे जुबां पे आऊं मैं
इल्तिजा है या रब इतना तो दया कर
करे बंद आंखे वो तो उसे नज़र आऊं मैं
इश्क का खूबसूरत अंदाज़ देखो दोस्तों
तकलीफ हो उसे तो अश्क-ए-दर्द बहाऊ मैं
गुज़र जाती हैं सदियाँ जैसे उसके बगैर
मिल जाये वो कभी तो किस्मत पे इतराऊ मैं
बयाँ-ए-हुश्न उसका कैसे करूँ भला
मिले ऐश्वर्या बदले में तो उसे भी ठुकराऊ मैं
इतना दीवाना बना दे खुदा मुझे उसका
बगैर देखे उसे उसकी तस्वीर बनाऊ मैं
करो जब गुफ्तगू किसी से तिरे जुबां पे आऊं मैं
रहो जब किसी महफ़िल में तेरे ख्यालों में आऊं मैं
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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