शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

तुम नहीं हो

सुरमई शाम है
इन्द्रधनुषी नभ है
तपती धरा है
टिमटिमाते चाँद तारे हैं
सलिल की सरसराती चाल है
मकानों की बेतरतीब पंक्तियाँ हैं
साथ में जुगनू की तरह
कृत्रिम रौशनी की चमक है
मोबाईल टावर भी हैं खड़े
ताड़ के पौधे प्रतिस्पर्धा में
उनके पास हैं खड़े
उड़ते-उड़ते पंछी
कर रहे
एक दूजे से ठिठोली
गलियों में निकल पड़ी है
बच्चों की टोली
मन को भाती
तन को उकसाती
कितनी सुहानी शाम है
सब कुछ है
नहीं है तो बस
प्रिये
तुम नहीं हो
तुम नहीं हो
       --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव

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