जाने क्यूँ
मन बहुत उदास है
दिल बहुत बेकल है
यूँ लगता है
कहीं कोई रिक्तता है
कहीं कुछ टूटा सा है
कहीं न कहीं तो
कुछ दरक गया है
कुछ खटक गया है
बीती निशा
कुछ तो हुआ है
चलते दिन में जो
रह-रह टीस रहा है
अब कोई पूछे तो
क्या कहूँ भला
जब नहीं पा रहा समझ
मैं भी
दर्द को मन के दर्पण में
कैसे देखूं भला
रह-रह के उगते हैं
जीवन में ऐसे हालत
रह-रह के छुरियां चलती हैं
प्रेम के गर्दन पे बलात
दिल को समझाउं मैं कैसे
बावरे मन को बहलाऊ कैसे
जितना ही सोचता हूँ
सोचें
उतना ही पागल करती हैं
जाने क्यूँ
जीवन से होता है
पराजय का अहसास
नैराश्य का आभास
कहते हैं लोग
चलते जाना ही जीवन है
किन्तु नहीं
अब नहीं चला जाता
थका-थका हुआ सा हूँ
बुझा-बुझा हुआ सा हूँ
- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
bahut sunder abhviyakti hai.............
जवाब देंहटाएंउतना ही पागल करती हैं
जवाब देंहटाएंजाने क्यूँ
जीवन से होता है
पराजय का अहसास
नैराश्य का आभास
कहते हैं लोग
चलते जाना ही जीवन है
किन्तु नहीं
अब नहीं चला जाता
थका-थका हुआ सा हूँ
बुझा-बुझा हुआ सा हूँ
abhar .... suswagat Rajni ji
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