सोमवार, 2 मई 2011

क्या कहिये

उन सुरमई आँखों की कशिश क्या कहिये   
संगमरमरी  बदन  की लचक क्या कहिये

मदहोश हो जाय दिल-ए-नादाँ  
उन नज़रों के तीर क्या कहिये

लहरा के चले पिय से मिलने नागिन
उसकी कमर के ख़म का क्या कहिये   

छुपा  हो  अर्ध-चाँद  बादलों  की  ओट  में  
उसके मुखड़े पे गेसुओं की लट क्या कहिये

बात-बात में बिखर उठती है लबों पे उसके 
रहस्य  में  लिपटी  मुस्कान  क्या  कहिये

जाने  कितने  दीवाने हैं उसके रूप के 
शोख चंचला की तकदीर क्या कहिये

यादें  हैं गुलशन के  गुलों  की तरह
उसकी यादों की महक क्या कहिये 

संगमरमरी  बदन  की लचक क्या कहिये
उन सुरमई आँखों की कशिश क्या कहिये   
                                     --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बात-बात में बिखर उठती है लबों पे उसके
    रहस्य में लिपटी मुस्कान क्या कहिये
    संभलकर रहिएगा इस मुस्कान से...
    बहुत अच्छी रचना...

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  2. हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया वीना जी ..... रहस्यमयी मुस्कान से बच कर रहने की आपकी सलाह पसंद आई .... ज़रूर अमल करूँगा इस पर ....

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  3. ek khoobsurat dil se nikli hui khoobsurat rachna..... bahut bahut badhai ho Sanjay ji .....

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  4. यादें हैं गुलशन के गुलों की तरह
    उसकी यादों की महक क्या कहिये ।

    उम्दा रचना...

    क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?

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