गुरुवार, 5 मई 2011

यादों के सहारे

उसकी यादों के सहारे जी रहा हूँ मैं  
उसके ग़मों का ज़हर पी रहा हूँ मैं  

                      सोचा नहीं क्या खोया क्या पाया
                      ज़िन्दगी से धोखा खा रहा हूँ मैं

                      न ही मिलता है न ही फोन करता है
                      उसके ही आस  में साँस ले रहा हूँ मैं 

                      वो खुद को समझता है कितना शातिर 
                      अपनी तबाही पे खूँ जला रहा हूँ मैं

                      थाम के हाथ फिर छोड़ दिया उसने  
                      क्या मकसद था बेवफा सोच रहा हूँ मैं 

उसके ग़मों का ज़हर पी रहा  हूँ मैं  
उसकी यादों के सहारे जी रहा हूँ मैं  
                                   --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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