उसकी यादों के सहारे जी रहा हूँ मैं
उसके ग़मों का ज़हर पी रहा हूँ मैं
सोचा नहीं क्या खोया क्या पाया
ज़िन्दगी से धोखा खा रहा हूँ मैं
न ही मिलता है न ही फोन करता है
उसके ही आस में साँस ले रहा हूँ मैं
वो खुद को समझता है कितना शातिर
अपनी तबाही पे खूँ जला रहा हूँ मैं
थाम के हाथ फिर छोड़ दिया उसने
क्या मकसद था बेवफा सोच रहा हूँ मैं
उसके ग़मों का ज़हर पी रहा हूँ मैं
उसकी यादों के सहारे जी रहा हूँ मैं
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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