गुरुवार, 12 मई 2011

आती हो

मेरे दामन के अंगारे कुरेदने आती हो
अब भी क्यूँ तसव्वुर पे छाने आती हो 

                इक कसक सी उठती है मेरे दिल में
                जब भी तुम याद मुझे आती हो

बहुत रुलाती हैं बीती मुलाकातें
मेरे ख्यालों में जब भी तुम आती हो 

                बिस्तर पर मचलने लगता हूँ रातों को 
                तुम ख्वाब में जब सामने आती हो 

जल उठता हूँ जुदाई की आग में मैं 
बिल्लौरी आँखों वाली याद जब आती हो 

               कितनी बेबसी महसूस करता हूँ मैं जब  
               पुरानी राहों पे तुम नज़र नहीं आती हो 

अब भी क्यूँ  तसव्वुर पे छाने आती हो 
मेरे दामन के अंगारे कुरेदने आती हो
                             --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव  

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