मेरे दामन के अंगारे कुरेदने आती हो
अब भी क्यूँ तसव्वुर पे छाने आती हो
इक कसक सी उठती है मेरे दिल में
जब भी तुम याद मुझे आती हो
बहुत रुलाती हैं बीती मुलाकातें
मेरे ख्यालों में जब भी तुम आती हो
बिस्तर पर मचलने लगता हूँ रातों को
तुम ख्वाब में जब सामने आती हो
जल उठता हूँ जुदाई की आग में मैं
बिल्लौरी आँखों वाली याद जब आती हो
कितनी बेबसी महसूस करता हूँ मैं जब
पुरानी राहों पे तुम नज़र नहीं आती हो
अब भी क्यूँ तसव्वुर पे छाने आती हो
मेरे दामन के अंगारे कुरेदने आती हो
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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