आओ लौट चलें हम उसी मुकाम पे
सदियों पहले मिले थे जिस मुकाम पे
करने लगी हो काम दुष्ट जादूगरनी के
ख्वाबों की शहजादी लगी थी उस मुकाम पे
कितनी झुलसन है बूढ़े जिस्म में
तेरी गेसुओं के साए थे उस मुकाम पे
ख्यालों में गुम रहते थे हम एक दूसरे के
दिल-ए-ख्वाहिश थी तुम जिस मुकाम पे
आहें भरते थे देख-देख राहों में तुम्हे
हमदम बनाने की चाह थी उस मुकाम पे
लज्ज़त-ए-इन्तज़ार कभी मिला ही नहीं
वक़्त पे आती थी लिए बहार उस मुकाम पे
जिम्मेदारिओं का बोझ है ज़िन्दगी के जंगल में
दीन-ओ-दुनिया की फिक्र न थी उस मुकाम पे
हर तरफ छाई है तेज धूप उदासियों की
मिलन की चाँदनी थी उस मुकाम पे
मंज़ूर नहीं सूरत देखना तुझ बेवफा की
मोहब्बत थी हममे भी उस मुकाम पे
उकता चले हैं हम इस तल्ख़ सफ़र से
नहीं था कोई गिला उस मुकाम पे
सदियों पहले मिले थे जिस मुकाम पे
आओ लौट चलें हम उसी मुकाम पे !!!
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
सदियों पहले मिले थे जिस मुकाम पे
करने लगी हो काम दुष्ट जादूगरनी के
ख्वाबों की शहजादी लगी थी उस मुकाम पे
कितनी झुलसन है बूढ़े जिस्म में
तेरी गेसुओं के साए थे उस मुकाम पे
ख्यालों में गुम रहते थे हम एक दूसरे के
दिल-ए-ख्वाहिश थी तुम जिस मुकाम पे
आहें भरते थे देख-देख राहों में तुम्हे
हमदम बनाने की चाह थी उस मुकाम पे
लज्ज़त-ए-इन्तज़ार कभी मिला ही नहीं
वक़्त पे आती थी लिए बहार उस मुकाम पे
जिम्मेदारिओं का बोझ है ज़िन्दगी के जंगल में
दीन-ओ-दुनिया की फिक्र न थी उस मुकाम पे
हर तरफ छाई है तेज धूप उदासियों की
मिलन की चाँदनी थी उस मुकाम पे
मंज़ूर नहीं सूरत देखना तुझ बेवफा की
मोहब्बत थी हममे भी उस मुकाम पे
उकता चले हैं हम इस तल्ख़ सफ़र से
नहीं था कोई गिला उस मुकाम पे
सदियों पहले मिले थे जिस मुकाम पे
आओ लौट चलें हम उसी मुकाम पे !!!
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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