देख तो लेता हूँ पर बात नहीं होती
अब तो रूबरू मुलाकात नहीं होती
लग गई हैं बंदिशें उस पे इस कदर
दिल से दिल की बात नहीं होती
अजीब तकदीर है मोहब्बत की भी
लगते ही पहरे बात नहीं होती
ज़िन्दगी तल्ख़ हो चली है उस बिन
कोशिशों बाद भी बात नहीं होती
कितने तंगदिल हैं दुनियावाले
सीने में उनके ज़ज्बात नहीं होती
मिलती हैं पल भर को हमारी नज़रें
इक लम्हे में तो सदियों की बात नहीं होती
जाने कैसा है वो उसका मिजाज़
जानूँ कैसे जब बात नहीं होती
आरज़ू है देखता रहूँ उस हसीं शै को
क्या हुआ गर कोई बात नहीं होती
फोन की हर सदा पे सोचूँ वही होगी
क्या करूँ फोन पे भी बात नहीं होती
दे कर उसे फिर छीन लिया मुझसे
या रब ये तो कोई सौगात नहीं होती
अब तो रूबरू मुलाकात नहीं होती
देख तो लेता हूँ पर बात नहीं होती
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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