शनिवार, 17 नवंबर 2012

बात नहीं होती


देख तो लेता हूँ पर बात नहीं होती
अब तो  रूबरू मुलाकात नहीं होती

लग गई हैं बंदिशें उस पे इस कदर   
दिल से दिल की बात नहीं होती 

अजीब तकदीर है मोहब्बत की भी 
लगते ही पहरे बात नहीं होती

ज़िन्दगी तल्ख़ हो चली है उस बिन  
कोशिशों बाद भी बात नहीं होती

कितने तंगदिल हैं दुनियावाले 
सीने में उनके ज़ज्बात नहीं होती

मिलती हैं पल भर को हमारी नज़रें  
इक लम्हे में तो सदियों की बात नहीं होती

जाने कैसा है वो उसका मिजाज़  
जानूँ  कैसे जब बात नहीं होती

आरज़ू है देखता रहूँ उस हसीं शै को
क्या हुआ गर कोई बात नहीं होती 

फोन की हर सदा पे सोचूँ  वही होगी
क्या करूँ फोन पे भी बात नहीं होती

दे कर उसे फिर छीन लिया मुझसे
या रब ये तो कोई सौगात नहीं होती

अब तो  रूबरू मुलाकात नहीं होती
देख तो लेता हूँ पर बात नहीं होती
                            --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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