छोटी सी मुलाकात अपनी !
थोड़ी सी मधुर बात अपनी !!
आये तुम मिले तुम
प्रेम किये तुम चल दिए तुम
बस इतनी सी कथा अपनी
मिल कर प्यार किये हमने
दो-चार प्रीत की बात किये हमने
दो पहर संग-संग बैठ लिए हमने
अधरों, कपोलों,अँखियों पर
कानों की लौ, ग्रीवा औ' हथेलिओं पर
कुछ चुम्बन धर लिए हमने
बांहों में सिमटने के मज़े लिए हमने
पति-पत्नी सा सुख लिए हमने
याद तो आती होंगी तुम्हे भी वो
हाथों में हाथों का स्पंदन
सांसों में साँसों का घुलन
दिल से मिले दिल की धड़कन
होंठों से होंठों की छुवन
कानों पे दांतों की चुभन
जिव्हा से वो जिव्हा-चुसन
याद तो मुझे भी आती है वो
अपने हाथों आइसक्रीम खिलाना तेरा
मेंहदी रची सलोनी हथेलियाँ दिखाना तेरा
रेस्तरां में ही निमंत्रण चुम्बन का देना तेरा
जाते-जाते अदा से बाय करना तेरा
कमर में डाल कर बांहें बैठना तेरा
स्वयं को सुन्दर न मानने का हठ तेरा
यही है सौगात मोहब्बत की अपनी
छोटी सी मुलाकात अपनी
संभव नहीं मिलना अब हमारा
लग गया है प्यार पे पहरा
शिकायत नहीं कोई मुझे तुमसे
तुम हो मजबूर
मैं भी हूँ मजबूर
चलो चलते हैं अब
एक दूसरे से दूर
तुम अपनी डगर
मैं अपनी डगर
फिर कभी मिले जो हम
फिर प्यार करेंगे हम
अधूरी रह गईं जो इच्छाएं
अतृप्त रह गईं जो तमन्नाएँ
करेंगे उन्हें पूरा हम
परन्तु नहीं मिल सके यदि हम
देखेंगे जब भी पलट कर हम
एक दूसरे को याद करेंगे हम
इन दिनों की मधुर यादें
यौवन के दर्पण में निहारेंगे हम
गीत जो लिखे हैं हमने प्रीत के
दिल ही दिल में गुनगुनायेंगे हम
क्या हुआ गर हुई
थोड़ी सी मधुर बात अपनी
छोटी सी मुलाकात अपनी !!
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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