रविवार, 18 नवंबर 2012

कल शब्


ख्वाब में देखा तुझे कल शब्
ख्वाब में भी तकता रहा कल शब्
                  तू आकर चला गई तीर-ए-अदा
                  सुकून को तरसता रहा कल शब्
देखा तो पर बात हमारी न हो सकी
ख्वाब में भी तरस गया बात को कल शब्
                 दिखी तुम पिंजड़े में कैद बुलबुल की मानिंद  
                 ख्वाब में भी पहरे देखा कल शब्
देख के सोचा पूरी होंगी आज आरजुएँ 
खून-ए-आरज़ू टपकता रहा कल शब्
                 खिला गुल बनाना चाह था लेकिन
                 छू भी न सका मासूम कली कल शब्
ख्वाब में भी तकता रहा कल शब्
ख्वाब में देखा तुझे कल शब्  !!!  
                              ___ संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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