गुरुवार, 15 सितंबर 2011

ये जिंदगी

कैसे कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी
पा के सब कुछ खो देती है ज़िन्दगी !

अकेले ही आई तनहा रह गई ज़िन्दगी
पलक से टपका अश्क हो गई ज़िन्दगी !

बड़े शौक से बनाया उसे अपनी ज़िन्दगी
दिल का आशियाँ उजाड़ गई ज़िन्दगी !

भरी हुई है उसकी यादों से ये ज़िन्दगी
लम्हा-लम्हा रोती रहेगी ताउम्र ज़िन्दगी !

क्यूँ नहीं पा सकी रअनाइयाँ ज़िन्दगी
सुबहोशाम रिसती रहेगी  ये जिंदगी !
                              ---- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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