रविवार, 4 सितंबर 2011

तेरी तो यही मंजिल है

अब और कहाँ जायेगा ऐ दिल तेरी तो यही मंजिल है
जो तूने चाहा है वही तो खुदा की नियामत वो दिल है

रख दी है अपनी ज़िन्दगी जिसके पैरों तले तूने
कोई और नहीं तेरी महबूब ही वो कातिल है

बारहा समझाया तुझे बदल ले तू खुद को ही
ऐ दिल लगता है तू खुद ही बहुत काहिल है

क्यों नहीं करने देता तू उसे उसकी मनमर्जी की
तू समझ ले वो तो घूमता फिरता एक बादल है

मोहब्बत है बलिदान, समर्पण का एक पर्याय
तू वही करता चल जो कहता उसका दिल है

जो तूने चाहा है वही तो खुदा की नियामत वो दिल है
अब और कहाँ जायेगा ऐ दिल तेरी तो यही मंजिल है
                                       --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव


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