शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

"वो" आयेगी

"वो" आयेगी
रंग हकीकत के
मेरे सपनों में भर जाएगी
डाल कर
अंखियों में मेरे अँखियाँ अपनी
वो
मदिरा पिला जाएगी
वो आयेगी
मैं फैला दूंगा बाँहें अपनी
उसके स्वागत में
वो समा जाएगी 
इनमें यूँ जैसे 
तरस रही हो इसके लिए
मुद्दत से
मैं चूमुंगा उसे
वो चूमेगी मुझे
मैं तप उठूँगा
वो तप उठेगी 
प्रेम-अतिरेक से
मैं मदहोश हो उठूँगा
उसके कायिक सुगंध से
वो आएगी 
मुझसे प्यारी-प्यारी
बतियाँ करेगी 
मुझे प्यार को तरसाएगी 
मैं डूबा रहूँगा 
उसकी मीठी-मीठी बतियों में 
खोया-खोया रहूँगा
उसकी नशीली अंखियों में
उसके हाथों की थिरकन 
जादू कर जाएँगी
मेरे तन-मन में
उसके अधरों की शाह्तूती  फांकें 
अतृप्त इच्छाएं मेरी
भडकायेंगी छन-छन में
वो आएगी
मैं चिपका रहूँगा
दूरभाष से
जाने कब कर बैठे 
वो संपर्क मुझसे
दूरभाष से
मैं उसे अपनी सुनाऊंगा
कुछ उसकी सुनूंगा
औ बाकी स्वयं  कह जाऊंगा
उसे
अपने प्रीत का आभास कराऊंगा
एक-एक वस्तु
जो की है मैंने एकत्र
उसके लिए
देकर उसे उसे मैं
आश्चर्य से भर दूंगा
औ'
उसके भोले चेहरे की
निखार निहारूंगा
वो मुझे चूम लेगी
अति  आनंद से
उसके गाल  आ  टिकेंगे 
मेरे काँधे पे
अति  प्यार से
वो मुझसे लिपट जाएगी
प्रेमातिरेग से
"वो" आएगी
मुझ पर प्यार अपना
लुटायेगी
बरस जाएगी मुझ पे
सावन की
बेक़रार बदली की तरह
मुखड़ा छुपा लेगी वो
मेरे सीने में
बादलों में  छुपते
चाँद की तरह
वो मुझे बताएगी
विरह काल की बातें
ख़ाली-ख़ाली, सूनी-सूनी
रातों की बातें
अपनों की, परायों की
घर की, बाहर की
मीठी-खट्टी बातें
वो बताएगी
अपनी भी "गुप्त-अन्तरंग"
प्यारी नशीली बातें
वो कुछ भी नहीं छुपाएगी मुझसे
वो सब कुछ निःसंकोच
कह जाएगी मुझसे
मेरा भी "उदर" फूल रहा है
बातें ढेर एकत्र होने से
मैं भी उगल दूंगा सारे
उसके स्वर्नेन्द्रियों में
सोचता हूँ क्या कहूँगा उससे
मैं "ये" कहूँगा उससे
मैं "वो" कहूँगा उससे
नहीं ...... नहीं ........
मैं सब कुछ कह दूंगा उससे
वो घूरेगी मुझे
आँखें तरेरेगी मुझे
विस्मय दर्शाएगी मुझे
प्यार भी करेगी मुझे
बातों-बातों में
योजना बनायेंगे साथ-साथ
कैसे रहेंगे, कैसे जियेंगे
हम
दांपत्य जीवन में !
"वो" आएगी
संग-संग टहला करूँगा 
मैं उन्हीं
पुरानी जानी-पहचानी राहों में
"वो" आएगी
मेरे दिन रंगीन हो जायेंगे
मेरी रातें श्रृंगारित हो उठेंगी
मेरे इर्द-गिर्द की हवाओं में
सुगंध उसकी ताजगी
भर जाएगी
परन्तु
वो शायद मुझको समय
नहीं दे पायेगी उतना
कहने, सुनने, करने को काफी हों
बातें ये जितना
दिन फिर पंख लगा कर उड़ जायेंगे
रातें फिर चुपके से सरक जाएँगी 
एक बार फिर
हमारी बातें पूरी नहीं
हो पाएंगी
हम मन मसोस 
रह जायेंगे
एक बार पुनः
हमारे अरमान अधूरे
रह जायेंगे
हम मिल कर भी
ना मिलने जैसा गम 
मनाएंगे
तदापि
मुझे प्रतीक्षा है उसके आने की
क्योंकि
पल भर को ही सही
"वो" आएगी
रंग हकीकत के कुछ
मेरे सपनों में
भर जाएगी  !!!
                   ---- संजय स्वरुप श्रीवास्तव








 

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