पा के सब कुछ खो देती है ज़िन्दगी !
अकेले ही आई तनहा रह गई ज़िन्दगी
पलक से टपका अश्क हो गई ज़िन्दगी !
बड़े शौक से बनाया उसे अपनी ज़िन्दगी
दिल का आशियाँ उजाड़ गई ज़िन्दगी !
भरी हुई है उसकी यादों से ये ज़िन्दगी
लम्हा-लम्हा रोती रहेगी ताउम्र ज़िन्दगी !
क्यूँ नहीं पा सकी रअनाइयाँ ज़िन्दगी
सुबहोशाम रिसती रहेगी ये जिंदगी !
---- संजय स्वरुप श्रीवास्तव