शनिवार, 10 दिसंबर 2011

दिल में ज़ज्ब

हर गम को दिल में ज़ज्ब करता चला गया
उसकी खातिर खुद को मारता चला गया

बेवफाई कर के उसका दावा इश्क है मुझी से
इस फरेब पर भी यकीन करता चला गया


किससे कहूँ अपनी बातें हल्का करूँ दुःख कैसे 
अपनी गजलों को हमराज़ बनाता चला गया


कितनी आरजुएँ कितनी उमंगें थी दिल में
उसकी बेवफाई में सब डूबता चला गया


मेरे ही दिल की टूटी किरचें पड़ी हैं राहों में
इनसे बचने की कोशिशें करता चला गया


उसने मुझे नहीं किसी और को चाहा किया
अपने आहत मन को सहलाता चला गया 

उसकी खातिर खुद को मारता चला गया
हर गम को दिल में ज़ज्ब करता चला गया
                                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 



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