ज़िन्दगी में गम के साये पलने लगे हैं
उसकी बेवफाई से हम सुलगने लगे हैं
हमने सोचा था वो सिर्फ हमारे हैं
वो तो गैरों के भी होने लगे हैं
कितना दिलकश था जीवन का रंग
इनमें खून-ए-दिल घुलने लगे हैं
सब कुछ खुशनुमां खुशनुमां था
बेवफाई से कब्रिस्तान बनने लगे हैं
देखो ज़रा मेरी किस्मत के लेख
जिन्हें दिया प्यार वो दगा देने लगे हैं
चाहत है मोहब्बत भरी ज़िन्दगी की
कैसे हो मुमकिन हम ये सोचने लगे हैं
उसकी बेवफाई से हम सुलगने लगे हैं
ज़िन्दगी में गम के साये पलने लगे हैं
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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