शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

गम के साये

ज़िन्दगी में गम के साये पलने लगे हैं
उसकी बेवफाई से हम सुलगने लगे हैं

                   हमने सोचा था वो सिर्फ हमारे हैं
                   वो तो गैरों के भी होने लगे हैं

कितना दिलकश था जीवन का रंग
इनमें खून-ए-दिल  घुलने लगे हैं

                 सब कुछ खुशनुमां खुशनुमां था 
                 बेवफाई से कब्रिस्तान बनने लगे हैं

देखो ज़रा मेरी  किस्मत के लेख
जिन्हें दिया प्यार वो दगा देने लगे हैं

                 चाहत है मोहब्बत भरी ज़िन्दगी की
                 कैसे हो मुमकिन हम ये सोचने लगे हैं 

उसकी बेवफाई से हम सुलगने लगे हैं
ज़िन्दगी में गम के साये पलने लगे हैं
                                  --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 



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