क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी
नींद भरी है आँखों में पर नींद नहीं आती
कडुवाहट भरी नींद हो गई ज़िन्दगी
कहते हैं गुज़रा वक़्त नहीं लौटता कभी
काश फिर शुरू कर पाता गई ज़िन्दगी
पास हो के मेरी नहीं है वो
आह कितना छल गई ज़िन्दगी
सब कुछ लगता है पराया-पराया सा
जो नहीं चाहा था वो हो गई ज़िन्दगी
सज़ावार हूँ गुनाहगार हूँ तेरा मैं
बक्श दे मुझे तनहा ऐ ज़िन्दगी
गुज़रा हुआ कल ख्वाब लगता है इक
सोचता हूँ हाथ बढ़ा छू लूँ तुझे ज़िन्दगी
चैन की नींद सो रहा है वो मेरे बाजू में
इक मैं ही तुझे सोच रहा हूँ ज़िन्दगी
मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी
क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी
नींद भरी है आँखों में पर नींद नहीं आती
कडुवाहट भरी नींद हो गई ज़िन्दगी
कहते हैं गुज़रा वक़्त नहीं लौटता कभी
काश फिर शुरू कर पाता गई ज़िन्दगी
पास हो के मेरी नहीं है वो
आह कितना छल गई ज़िन्दगी
सब कुछ लगता है पराया-पराया सा
जो नहीं चाहा था वो हो गई ज़िन्दगी
सज़ावार हूँ गुनाहगार हूँ तेरा मैं
बक्श दे मुझे तनहा ऐ ज़िन्दगी
गुज़रा हुआ कल ख्वाब लगता है इक
सोचता हूँ हाथ बढ़ा छू लूँ तुझे ज़िन्दगी
चैन की नींद सो रहा है वो मेरे बाजू में
इक मैं ही तुझे सोच रहा हूँ ज़िन्दगी
मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी
क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
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