मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

आंसू हो गई ज़िन्दगी

क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी

नींद भरी है आँखों में पर नींद नहीं आती
कडुवाहट भरी नींद हो गई ज़िन्दगी


कहते हैं गुज़रा वक़्त नहीं लौटता कभी
काश फिर शुरू कर पाता गई ज़िन्दगी


पास हो के मेरी नहीं है वो
आह कितना छल गई ज़िन्दगी


सब कुछ लगता है पराया-पराया सा
जो नहीं चाहा था वो हो गई ज़िन्दगी


सज़ावार हूँ गुनाहगार हूँ तेरा मैं
बक्श दे मुझे तनहा ऐ ज़िन्दगी


गुज़रा हुआ कल ख्वाब लगता है इक
सोचता हूँ हाथ बढ़ा छू लूँ तुझे ज़िन्दगी


चैन की नींद सो रहा है वो मेरे बाजू में
इक मैं ही तुझे सोच रहा हूँ ज़िन्दगी 

मुस्कान से टपका आँसू हो गई ज़िन्दगी
क्या सोचा और क्या हो गई ज़िन्दगी
                             --- संजय स्वरुप श्रीवास्तव 

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