जब कोई किसी के दिल में
कैसे संभाले
भला कोई
स्वयं को ऐसी हालत में
कोई
भला क्या जाने
उसके दिल की हालत
जिसकी दुनिया
लुटाई
उसी की दुनिया ने
कोई ज़रा बैठ कर तो देखे
ग़मों की भीड़ में
ऐसे में गम
बढ़ते ही जाते हैं
गम भी हमें
कितना सताते हैं
कितना रुलाते हैं
कितना छलते हैं
हर पल जी होता है
मर जाएँ मिट जाएँ
ये दुनियां ही छोड़ जाएँ
ये गम ये दुःख ये पीड़ा
क्यूँ होती है
संभवतः
स्वयं को सीमाओं में बांध लेना ही
कारण है इन सबके
तो फिर
ये सीमायें क्यूँ बंधी हैं
हम
इन सीमाओं से
क्यूँ बांध जाते हैं
सोचो कि
हम यदि ऐसा करेंगे तो
वो भी ऐसा करेगा
हम यदि ऐसा नहीं करेंगे तो
वो भी ऐसा नहीं करेगा
करना भी चाहेगा
तो
ईश्वर उसे रोकेगा
परन्तु स्वयं के न करने पर भी
दूसरा कर जाता है
तो
कौन गलत है ?
न करने वाला ?
करने वाला ?
या
ऊपर वाला ?
हँसना, हँसना, हँसना ....
ही उत्तर है इसका
ऐसे में
यदि चाहो तो भी
नहीं निकलते आँखों से आंसू
हरसंभव प्रयत्नों के बाद भी
निकलते भी हैं तो तेजाब की तरह
शायद दिल में उतरा ज़हर
आंसुओं को भी
तेजाब बना देता हो
लेकिन
प्यार में तो
जैसे को तैसा
जरुरी नहीं
मैं
कैसे उसे प्यार करना
छोड़ दूँ
वो तो मेरी ज़िन्दगी है
वो मेरी ज़रूरत है
वो कुछ भी करे मेरे संग
मैं तो
करता रहूँगा वफ़ा
उसके संग
स्वयं तो जलता रहूँगा
पर उसे
अपनी आँच से भी बचाए रखूँगा
पता नहीं वो
मेरे प्यार को अब भी
आदर दे सकेगी या नहीं
पता नहीं वो अब भी
मुझसे वफ़ा कर सकेगी या नहीं
या
यूँ ही मुझे उम्र भर
सजा दे-दे कर
सताती रहेगी
रुलाती रहेगी ....
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
हम
इन सीमाओं से
क्यूँ बांध जाते हैं
सोचो कि
हम यदि ऐसा करेंगे तो
वो भी ऐसा करेगा
हम यदि ऐसा नहीं करेंगे तो
वो भी ऐसा नहीं करेगा
करना भी चाहेगा
तो
ईश्वर उसे रोकेगा
परन्तु स्वयं के न करने पर भी
दूसरा कर जाता है
तो
कौन गलत है ?
न करने वाला ?
करने वाला ?
या
ऊपर वाला ?
हँसना, हँसना, हँसना ....
ही उत्तर है इसका
ऐसे में
यदि चाहो तो भी
नहीं निकलते आँखों से आंसू
हरसंभव प्रयत्नों के बाद भी
निकलते भी हैं तो तेजाब की तरह
शायद दिल में उतरा ज़हर
आंसुओं को भी
तेजाब बना देता हो
लेकिन
प्यार में तो
जैसे को तैसा
जरुरी नहीं
मैं
कैसे उसे प्यार करना
छोड़ दूँ
वो तो मेरी ज़िन्दगी है
वो मेरी ज़रूरत है
वो कुछ भी करे मेरे संग
मैं तो
करता रहूँगा वफ़ा
उसके संग
स्वयं तो जलता रहूँगा
पर उसे
अपनी आँच से भी बचाए रखूँगा
पता नहीं वो
मेरे प्यार को अब भी
आदर दे सकेगी या नहीं
पता नहीं वो अब भी
मुझसे वफ़ा कर सकेगी या नहीं
या
यूँ ही मुझे उम्र भर
सजा दे-दे कर
सताती रहेगी
रुलाती रहेगी ....
--- संजय स्वरुप श्रीवास्तव
sach sanjay tumhari kavita mai bahut pyar bahut acchi lagti hi tumhari kavitayen...
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